जगत चाह रहा प्रकाश, मैं प्रकाश से अवकाश
टिमटिमाते संसार की, कृत्रिमता से है प्रकाशित
इस कुरूपता का अंतहीन प्रचार
कर के व्याप्त स्वयं में दंभ इस कृत्रिमता का,
हे अन्धकार, दे प्रकाश को अवकाश
इसके स्वयं के कोलाहल से, दे प्रकाश को अवकाश
जगत चाह रहा प्रकाश, मैं प्रकाश से अवकाश
टिमटिमाते संसार की, कृत्रिमता से है प्रकाशित
इस कुरूपता का अंतहीन प्रचार
कर के व्याप्त स्वयं में दंभ इस कृत्रिमता का,
हे अन्धकार, दे प्रकाश को अवकाश
इसके स्वयं के कोलाहल से, दे प्रकाश को अवकाश
Leave a comment